Karpoori Thakur Kaun The : कर्पूरी ठाकुर कौन थे?
भारत रत्न की घोषणा के बाद से ही सभी लोगों के मन में केवल एक ही सवाल है कि कर्पूरी ठाकुर कौन थे? (Karpoori Thakur Kaun The) कर्पूरी ठाकुर को बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री के रुप में जाना जाता है। इनका जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पटना से पूरी की। कहा जाता हैं कि कॉलेज की पढ़ाई के दौरान देश की आजादी के लिए चल रहे भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया था। देश की आजादी की लडाई के दौरान उन्हें लगभग 26 महीनों का वक्त जेल में बिताना पड़ा था। देश के स्वतंत्र होने के बाद उन्होंने अपने गांव में पढ़ाना शुरू कर दिया था
Karpoori Thakur Biography in Hindi
कर्पूरी ठाकुर जीवनी | |
नाम | कर्पूरी ठाकुर |
अन्य नाम | जननायक |
जन्म | 24 जनवरी 1924 |
जन्म स्थान | समस्तीपुर, बिहार |
मृत्यु | 17 फरवरी 1988 |
जाति | पिछड़ी |
समुदाय | नाई समुदाय |
1952 से हुई असली राजनीतिक जीवन की शुरुआत
1952 में हुए विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते हुए कर्पूरी ठाकुर ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। कहा जाता हैं कि इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें कभी भी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। उनकी असली पहचान उनकी सादगी और जनता के सवालों को सदन में मजबूती से उठाने के लिए जानी जाती हैं। समाज के निचले और कमजोर वर्ग पर आए दिन होने वाले अत्याचार और जुल्मों की घटनाओं को लेकर कर्पूरी ठाकुर निर्वाचित सरकार को भी आड़े हाथों लेते थे।
Karpuri Thakur Kis Caste Ke The : कर्पूरी ठाकुर किस जाति के थे?
कर्पूरी ठाकुर बिहार में पिछड़ी जाति के परिवार में जन्मे थे। अगर और आगे बात करें तो ये बिहार में नाई समुदाय से आते हैं। इन्होंने सामाजिक न्याय के लिए बहुत काम किया है।
बनें बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री
कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने थे जो कांग्रेस पार्टी से नहीं थे, सबसे पहले वो दिसम्बर 1970 से जून 1971 सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री बनें। बिहार का मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने की शुरुआत की।
इसके बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो जून 1977 से लेकर अप्रैल 1979 तक उन्होंने दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई। अपने दो बार के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने जिस तरह की अमिट छाप बिहार के समाज एवं निचले वर्गों पर छोड़ी हैं वैसा दूसरा उदाहरण कही दिखाई नहीं देता।
जब उन्होंने की थी सामाजिक बदलावों की शुरुआत
बिहार का मुख्यमंत्री बनने से पहले जब वो 1967 में बिहार के उपमुख्यमंत्री बनें तो सबसे पहले उन्होंने शिक्षा में अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता को पूरी तरह से खत्म कर दिया। अपने इस फैसले के चलते उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था लेकिन उनके इस फैसले के चलते शिक्षा आम लोगों तक पहुंची थी।
इस समयावधि के दौरान उन्हें शिक्षामंत्री की भी जिम्मेदारी मिली हुई थी और उनके निरतंर प्रयासों की वजह से मिशनरी स्कूलों में भी हिंदी में पढ़ाई शुरू हो सकी। बिहार में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की स्कूल फीस को माफ करवाने का श्रेय भी कर्पूरी ठाकुर को जाता हैं। अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्होंने पूरे राज्य में मैट्रिक तक की शिक्षा मुफ्त देने की घोषणा की थी और ऐसा करने वाले वो देश के पहले मुख्यमंत्री थे।
जब कर्पूरी ठाकुर ने लिए कई महत्वपूर्ण फैसले
1971 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने मुंगेरीलाल कमीशन लागू किया जिसके द्वारा राज्य की सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया। अपने उस कदम के चलते वो सवर्णों के विरोधी बन गए थे।
अपने कार्यकाल के दौरान ही उन्होंने बिहार के सभी सरकारी विभागों में कामकाज को हिंदी भाषा में करना अनिवार्य कर दिया था और इसी के साथ बिहार में सबसे पहले सरकारी कर्मचारियों के लिए समान वेतन आयोग को लागू करने का काम भी उन्होंने किया था।
युवाओं को रोजगार देने की अपनी प्रतिबद्धता के चलते उन्होंने एक कैम्प आयोजित करके 9000 से भी ज्यादा डॉक्टरों एव इंजीनियर को नौकरी दी थी और इतनी बड़ी संख्या में आजतक किसी भी राज्य में डॉक्टर एव इंजीनियर की बहाली नहीं हुई हैं।
ईमानदारी एव सादगी से बिताया पूरा जीवन
राजनीति से जुड़े किसी राजनेता के पास संपत्ति होना आज के इस युग में सामान्य हैं लेकिन कर्पूरी ठाकुर की सादगी एवं ईमानदारी का इसी बात से अंदाज लगाया जा सकता हैं कि उनके देहांत के समय तक उनके नाम ना तो कोई मकान था और ना ही एक इंच भी जमीन उनके नाम थी। आज के समय में नेताओं के घोटाले और भ्रष्टाचार की जिस तरह खबरें आती रहती हैं ऐसे में कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी उनके सादगी भरे जीवन को दर्शाती हैं।
कभी लगे थे उन पर दवाब की राजनीति के आरोप
बिहार की राजनीति में उन पर कई बार दल-बदल की राजनीति और दबाव की राजनीति करने के आरोप लगें। उनके प्रतिद्वंदियों ने उन पर आरोप लगाए कि वो दबाव की राजनीति करने में निपुण हैं इसके अलावा कई बार जातिगत चुनावी समीकरणों को मद्दनेजर रखते हुए उनके द्वारा चुनाव में उम्मीदवार तय करने की भूमिका पर सवाल उठे थे।
कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से 64 वर्ष की आयु में हो गया था।
सामाजिक न्याय का प्रतीक’: प्रधानमंत्री मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा के बाद उन्हें ‘सामाजिक न्याय का प्रतीक’ बताया और कहा कि
“दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर कभी ना मिटने वाली छाप छोड़ी है।”
सोशल मीडिया साइट प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर प्रधानमंत्री ने अपने आधिकारिक हैंडिल से जनता के नाम संदेश देते हुए कहा कि
“मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक, महान जन नायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय किया है और वह भी ऐसे समय में जब हम उनका जन्म शताब्दी दिवस मना रहे हैं।”
देश के सबसे सम्मानित सम्मान भारत रत्न से कर्पूरी ठाकुर को सम्मानित करने का फैसला कमजोर वर्ग के लोगों के लिए एक समानता और सशक्तिकरण के एक समर्थक के रूप में कर्पूरी ठाकुर के स्थायी प्रयासों का ही प्रमाण है।
इसके अलावा पीएम मोदी ने ये भी कहा कि यह पुरस्कार सम्मान न केवल कर्पूरी ठाकुर के उल्लेखनीय योगदान का सम्मान करता है, बल्कि हमें एक अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज बनाने के उनके उद्देश्य को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है।”