Justice S. Ravindra Bhat Biography In Hindi | जानिए कौन हैं जस्टिस एस रविन्द्र भट्ट जिन्होंने EWS के खिलाफ फैसला दिया

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Justice S. Ravindra Bhat Biography In Hindi : सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को बरकरार रखा। जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 10% EWS आरक्षण प्रदान किया गया है। तीन न्यायाधीश ने अधिनियम को बरकरार रखने के पक्ष में जबकि चीफ जस्टिस और एस रविन्द्र भट्ट ने इसपर असहमति जताई। आज हम आपको इस आर्टिकल में एस रविन्द्र भट्ट के जीवन (Justice S. Ravindra Bhat Biography In Hindi)के बारे में विस्तार से बताने वाले है।

 JUSTICE S RAVINDRA BHATT BIOGRAPHY IN HINDI

जस्टिस एस रविंद्र भट्ट का जीवन परिचय | Justice S. Ravindra Bhat Biography In Hindi

न्यायाधीश श्रीपथी रविन्द्र भट्ट जन्म 21 अक्टूबर 1958 को मैसोर में हुआ था।  उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बैंगलोर और ग्वालियर में की थी। बेंगलुरू, ग्वालियर व गाजियाबाद में स्कूली शिक्षा के बाद डीयू के हिंदू कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। 1982 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से ही एलएलबी की डिग्री ली। 1982 से ही उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी। 6 जुलाई, 2004 को दिल्ली हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त हुए। 20 फरवरी 2006 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।

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Justice S. Ravindra Bhat Biography
नाम  जस्टिस एस रविन्द्र भट्ट
पूरा नाम श्रीपथी रविन्द्र भट्ट
जन्म 21 अक्टूबर, 1982
स्थान मैसूर
पेशा  जज (हाई कोर्ट)

अपने फैसलों से चर्चे में रहे जस्टिस एस रविंद्र भट

जस्टिस रविंद्र भट्ट ने जयपुर राजघराने से जुड़े संपत्ति विवाद पर अहम फैसला दिया था। गायत्री देवी की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति को लेकर विवाद छिड़ गया था। उनके पौत्र देवराज और पौत्री लालित्या संपत्ति पर अपने हक को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे थे। इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस भट्ट ने फैसला दिया कि देवराज और लालित्या को गायत्री देवी की संपत्ति का लीगल रिप्रजेंटेटिव माना जाएगा।

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जस्टिस एस रविंद्र भट ने पहली बार हाईकोर्ट के स्तर पर ई-कोर्ट के जरिए सुनवाई की शुरुआत की थी।

EWS के ऐतहासिक फैसले में शामिल

सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को बरकरार रखा। जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 10% EWS आरक्षण प्रदान किया गया है। तीन न्यायाधीश ने अधिनियम को बरकरार रखने के पक्ष में जबकि चीफ जस्टिस और एक न्यायाधीश ने इसपर असहमति जताई। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS आरक्षण के फैसले को सही ठहराया। वहीं चीफ जस्टिस यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने इससे असहमति जताई। EWS संशोधन को बरकराकर रखने के पक्ष में निर्णय 3:2 के अनुपात में हुआ।

जस्टिस रविंद्र भट ने EWS आरक्षण पर असहमति जताई। वहीं चीफ जस्टिस यूयू ललित भी सरकार के 10% आरक्षण के खिलाफ रहे। जस्टिस रविंद्र भट ने कहा कि कोटे की 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है इसलिए EWS आरक्षण किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है।

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