Shaligram stone history in hindi : हाल ही में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बनाये जा रहे राम मंदिर के लिये नेपाल से शालिग्राम के खास पत्थर मंगवाये गये हैं जो कि करीब 6 हजार साल से पुराने बताये जा रहे हैं। जिसके बाद से यह काफी चर्चा का विषय बना हुआ है। इस आर्टिकल में हम आपको shaligram stone history in hindi , शालिग्राम पत्थर कैसा होता है?, शालिग्राम पत्थर कितना पुराना है, शालिग्राम पत्थर का महत्व, शालिग्राम पत्थर की विशेषता, शालिग्राम भगवान कौन है, घर में शालिग्राम रखना सही या नहीं, शालिग्राम की उत्पति कैसे हुई आदि
विषय पर विस्तार से बताने वाले है।
Shaligram stone history in hindi | शालिग्राम शिला क्या है?
शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर (पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं उन्हें जीवाश्म (जीव + अश्म = पत्थर) कहते हैं) है। शालीग्राम पत्थर का उपयोग हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के गैर-मानवरूपी प्रतिनिधित्व के रूप में किया जाता है।
वही शिव भक्त पूजा करने के लिए शिव लिंग के रूप में लगभग गोल या अंडाकार शालिग्राम का उपयोग करते हैं। वैष्णव (हिन्दू) पवित्र नदी गंडकी में पाया जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करते हैं।
पद्मपुराण में शालिग्राम का वर्णन मिलता है भगवान के विशनुस्वरूप वर्णन का ये सत्य कि अगर असली शालिग्राम मिल जाए तो समझ लें कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा को स्रोत मिल गया | लक्ष्मी जी की अहेतु की कृपा पाने मे इस विग्रह को पराऊओग किया जाना एक सामान्य सी मान्यता है। लेकिन असली शालिग्राम मिलना दुर्लभ ही है।
पद्मपुराण के अनुसार– गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, वहां से निकलने वाले पत्थर को शालिग्राम शिला कहते है। शालिग्राम पत्थर के केवल स्पर्श मात्र से ही करोड़ो जन्मो के पाप का नाश हो जाता है। जो मनुष्य शालिग्राम-शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं।
द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र से युक्त, अनेकों चक्रों से चिह्नित तथा चक्रासन-शिला के समान आकार वाले भगवान शालिग्राम साक्षात चित्स्वरूप निरंजन परमात्मा ही हैं। ओंकार रूप तथा नित्यानन्द स्वरूप शालिग्राम को नमस्कार है।
शालिग्राम की उत्पति कैसे हुई
पेट्रीफिकेशन (पेट्रोस का अर्थ है पत्थर) तब होता है जब कार्बनिक पदार्थ पूरी तरह से खनिजों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है और जीवाश्म पत्थर में बदल जाता है। यह आम तौर पर ऊतकों के छिद्रों को भरकर होता है, और खनिजों के साथ इंटर और इंट्रा सेलुलर रिक्त स्थान, फिर कार्बनिक पदार्थ को भंग करने और इसे खनिजों के साथ बदलने से होता है।
शालिग्राम पत्थर कहाँ पाया जाता है?
शालिग्राम मूलरूप से नेपाल में स्थित दामोदर कुंड से निकलने वाली काली गंडकी नदी से प्राप्त किया जाता है। इसलिए शालिग्राम को गंडकी नंदन भी कहते हैं। वैष्णव (हिंदू) पवित्र नदी गंडकी में पाए जानेवाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग के एमोनोइड जीवाश्म को विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पूजते हैं।
असली शालिग्राम पत्थर की पहचान
शालिग्राम को पहचानने के लिए उसके आकार को देखा जाता है। यदि वह शालिग्राम गोलाकार है तो वह भगवान विष्णु का गोपाल रूप माना जाता है। वहीँ भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार वाला शालिग्राम मछली के आकार का प्रतीत होता है। कछुए के अवतार वाला शालिग्राम श्री हरि के कच्छप अवतार जैसा प्रतीत होता है।
लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं, जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना जाता है। मान्यता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं। भगवान विष्णु के अवतारों के अनुसार, शालिग्राम यदि गोल है तो वह भगवान विष्णु का गोपाल रूप है।
मछली के आकार का शालिग्राम श्रीहरि के मत्स्य अवतार का प्रतीक माना जाता है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो इसे विष्णुजी के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम पर उभरनेवाले चक्र और रेखाएं विष्णुजी के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण रूप में उनके कुल को इंगित करती हैं।
शालिग्राम भगवान कौन है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार शालिग्राम भगवान विष्णु के विग्रह रूप को कहा जाता है। ये नेपाल के गंडक नदी के तल में पाए जाते हैं। यहां पर सालग्राम नामक स्थान पर भगवान विष्णु का मंदिर है, जहां उनके इस रूप का पूजन होता है।
घर में शालिग्राम रखना चाहिये या नहीं
अगर शालिग्राम घर में स्थापित किया है तब उसकी पूजा-पाठ का बहुत बंधन है, लाभ के स्थान पर अनर्थ की संभावना हो सकती है। ऐसी मान्यता भी मिलती है कि अगर शालिग्राम का व्यवसाय किया जाता है तो क्रय और विक्रय करने वाले दोनों को शुभता के स्थान पर संकटों का सामना अधिक करना पड़ता है।
शालिग्राम पत्थर की विशेषता / महत्व
स्वयं भगवान कृष्ण ने महाभारत में युधिष्ठिर को शालिग्राम के गुण बताए हैं। मंदिर अपने अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार के शालिग्राम का उपयोग कर सकते हैं। जिस स्थान पर शालिग्राम पत्थर पाया जाता है वह स्वयं उस नाम से जाना जाता है और भारत के बाहर ‘वैष्णवों’ के लिए 108 पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है।
घर मे होता है धन लाभ – शालिग्राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है जिसके चलते मां लक्ष्मी अपने आप प्रसन्न हो जाती हैं।
वास्तु दोष से मिलता है छुटकारा– शालीग्राम की स्थापना से घर में होने वाले सभा वास्तु दोष और आने वाली समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।
दांपत्य जीवन में हमेशा रहती है खुशहाली– शालिग्राम की पूजा से दांपत्य जीवन में शांति आती है और पति-पत्नी के बीच होने वाले झगड़ों को समाप्त करता है।
तीर्थस्थान के बराबर पुण्य की होगी प्राप्ति– धर्मानुसार तीर्थयात्रा का फल सबसे ज्यादा माना जाता है लेकिन अगर आप तीर्थयात्रा नहीं कर सकते हैं तो घर में शालिग्राम की स्थापना कर उसकी नियमित पूजा कीजिए।
शालिग्राम की पूजा विधि
वैष्णवों के अनुसार शालिग्राम ‘भगवान विष्णु का निवास स्थान’ है और जो कोई भी इसे रखता है, उसे प्रतिदिन इसकी पूजा करनी चाहिए। शालिग्राम की पूजा करने के लिये पूजा के स्थान पर पीला कपड़ा बिछाकर चांदी या स्टील के प्लेट पर शालिग्राम की मूर्ति रखें और उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं। चंदन का लेप लगाकर तुलसी का पत्ता चढ़ाएं। शालिग्राम पर फल, फूल और मिष्ठान चढ़ाकर धूप-दीप जलाएं और हल्दी की माला से भगवान विष्णु जी के मंत्रों का जाप करें।
शालिग्राम और शिवलिंग में क्या अंतर है?
शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान का देवता रूप माना गया है और पुराणों के अनुसार भगवान के इसी देवता रूप की ही पूजा की जानी चाहिए। जहां शिवलिंग भगवान शंकर का प्रतीक है, वहीं शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रतीक है । भारत में शिवलिंग के लाखों मंदिर हैं, लेकिन शालग्रामजी का एक ही मंदिर है।